वहीं, दूसरी तरफ करीमा बोलच पीएम मोदी व उनकी नीतियों की मुरीद रहा करतीं थीं। यही नहीं, वे पीएम मोदी को प्यार से भाई कहकर भी बुलातीं थीं। जिसके चलते उन्हें पाकिस्तान में आलोचनाओं से भी रूबरू होना पड़ता था, लेकिन इन सबसे बेपरवाह होकर वे अपनी बहन होने की सभी कर्तव्यों का निर्वहन किया करतीं थीं। भले ही उनका पीएम मोदी से कोई रिश्ता न हो मगर एक दिली रिश्ता उनका जरूर था जो आज हमेशा-हमेशा के लिए सुपुर्द-ए-खाक हो गया।
37 वर्षीय करीमा बलोच के शव को बलूचिस्तान प्रांत में स्थित उनके गांव लाकर कड़ी सुरक्षा के बीच दफनाया गया। 22 दिसंबर को कनाडा के टोरोन्टो में उनकी संदिग्ध स्थिति में मौत हो गई थी, लेकिन पुलिस ने उनकी मौत को संदिग्ध बताने से इनकार कर दिया था। बीते 2016 से ही करीमा बलोच कनाडा में निर्वासित जिंदगी जी रही थी। वे बलूचिस्तानी प्रांत में मानवाधिकारों के उल्लंघन का मसला भी मुखर होकर उठाती रहीं। करीमा को बीच के टम्पु गांव में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस मौके पर उनकी नजदीकी और रिश्तेदार ही शिरकत कर पाएं। ज्यादा संख्या में लोगों को शिरकत होने की इजाजत नहीं दी गई। किसी भी अप्रिय घटना को मद्देनजर रखते हुए सभी सीमाओं को सील कर दिया गया था।