दिल्ली। समाज के चाहतों, निर्णय से ही परिवार का गठन होता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 में लिंगानुपात को लेकर आये आंकड़ों ने परिवार के तानेबाने को बिगाड़ दिया है। सर्वे के अनुसार भारत में दूसरे, तीसरे और उससे ज्यादा बच्चे की चाहत ने लिंगानुपात को बिगड़ता जा रहा है। 5.53 लाख जन्मे बच्चों का विश्लेषण बताता है कि एसआरबी दूसरे और तीसरे बच्चे की चाहत के कारण के लिंगानुपात को ज्यादा प्रभावित किया है। पहले बच्चे के समय प्रति 100 लड़कियों पर 107.5 लड़कों का जन्म हुआ जबकि तीसरे बच्चे के समय यह आंकड़ा प्रति 100 लड़कियों पर 112.3 लड़के तक पहुंच गया। ज्ञात हो कि यह सर्वे भारत के इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया सैन डिएगो के सेंटर ऑन जेंडर इक्विलिटी एंड हेल्थ के शोधकर्ताओं ने किया है। माना जाता है कि सामान्य परिस्थितियों में एसआरबी प्रति 100 लड़कियों पर 103-106 लड़कों के बीच रहा है। अनुमानित वैश्विक औसत 105 है।
सर्वे के अनुसार जब कम्यूनिटी लेवल फर्टिलिटी प्रति महिला 2.8 बच्चों से ज्यादा थी तो एसआरबी सामान्य रेंज यानि यानि 103.7 में था। शोध में शामिल विषेशज्ञ ने कहा कि छोटे और अमीर परिवार लिंग का चयन करने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। शोध बताता है कि इसके पीछे बेटे की चाहत एक मुख्य कारण है। भारत में पहले बच्चे के जन्म के समय एसआरबी अब भी सामान्य सीमा से परे हैं और ज्यादा बच्चों के साथ ये और ज्यादा बिगड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जमीन के उत्तराधिकार की वजह से बेटे की चाहत लिंगानुपात को बिगाड़ती है। दूसरे या तीसरे बच्चे के साथ जिन घरों में 10 एकड़ या उससे ज्यादा जमीन है, वहां लड़का पैदा होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। इस बात की संभावना है कि संपन्न लोगों ने लिंग निर्धारण किया हो।